इश्क़ एक फ़लसफ़ा
ये इश्क़ अजब है फ़लसफ़ा पता कहाँ कुछ चलता है, कैसे हो जाये कोई बेवफ़ा, कोई कैसे रंग बदलता है । जब तपती धूप बहार लगे, जब पतझड़ भी गुलज़ार लगे, जब बेचैनी भी करार लगे, जब नफ़रत किसी की प्यार लगे। ये इब्तिदाई इश्क़ है यारा पता कहाँ कुछ चलता है, कैसे हो जाये कोई बेवफ़ा कोई कैसे रंग बदलता है। जब हर मौसम ख़ुशगवार लगे, जब शोर कोई झनकार लगे, जब बातें सारी बेकार लगे, जब ना भी उनका इज़हार लगे, इस इश्क़ की ख़ुमारी में पता कहाँ कुछ चलता है, कैसे हो जाये कोई बेवफ़ा, कोई कैसे रंग बदलता है। अब फ़ूल हर इक अँगार लगे, अब महफ़िल भी बाज़ार लगे, अब राहत भी नागवार लगे, अब सुकूँ के पल बेज़ार लगे। अब कोई भी न यार लगे, अब बातें सारी बेकार लगे, अब दुश्मन सारा संसार लगे, अब वीराना ही घरबार लगे। ये इश्क़ की है इन्तेहाँ पता कहाँ कुछ चलता है, कैसे हो जाये कोई बेवफ़ा कोई कैसे रंग बदलता है, कैसे हो जाये कोई बेवफ़ा, कोई कैसे रंग बदलता है।। -- Saify --