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इश्क़ एक फ़लसफ़ा

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ये इश्क़ अजब है फ़लसफ़ा पता कहाँ कुछ चलता है, कैसे हो जाये कोई बेवफ़ा, कोई कैसे रंग बदलता है ।  जब तपती धूप बहार लगे, जब पतझड़ भी गुलज़ार लगे, जब बेचैनी भी करार लगे, जब नफ़रत किसी की प्यार लगे। ये इब्तिदाई इश्क़ है यारा पता कहाँ कुछ चलता है, कैसे हो जाये कोई बेवफ़ा कोई कैसे रंग बदलता है। जब हर मौसम ख़ुशगवार लगे, जब शोर कोई झनकार लगे, जब बातें सारी बेकार लगे, जब ना भी उनका इज़हार लगे, इस इश्क़ की ख़ुमारी में पता कहाँ कुछ चलता है, कैसे हो जाये कोई बेवफ़ा, कोई कैसे रंग बदलता है। अब फ़ूल हर इक अँगार लगे, अब महफ़िल भी बाज़ार लगे, अब राहत भी नागवार लगे, अब सुकूँ के पल बेज़ार लगे। अब कोई भी न यार लगे, अब बातें सारी बेकार लगे, अब दुश्मन सारा संसार लगे, अब वीराना ही घरबार लगे। ये इश्क़ की है इन्तेहाँ पता कहाँ कुछ चलता है, कैसे हो जाये कोई बेवफ़ा कोई कैसे रंग बदलता है, कैसे हो जाये कोई बेवफ़ा, कोई कैसे रंग बदलता है।। -- Saify --

Aadat si ho gai hai...

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Waada

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Main Apni Kismat Pe Roun

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मैं अपनी किस्मत पे रोऊं या अपने मुकद्दर पे रोऊं तू ही बता ऐ हमनवां जा के किस के दर पे रोऊं।   जिन रस्तों पर साथ था मेरे अब हर उस एक डगर पे रोऊं दीवानगी के आलम में गुज़रे मैं हर उस एक सफर पे रोऊं।   चांद सा मुखड़ा याद है मुझको देख के उस क़मर को रोऊं जो बीज इश्क का बोया तूने मैं बैठकर उस शजर पे रोऊं।   अब खुश है साथ वो किसी और के  सुनकर क्या इस खबर पे रोऊं दिल में उतरती, टुकड़े करती तेरी उस इक नज़र पे रोऊं।   लफ़्ज़ क्या अल्फ़ाज़ भी बिगड़े अब क्या ज़ेरो ज़बर पे रोऊं झूठी तसल्ली अब रास नहीं मैं उसकी सच्ची क़दर पे रोऊं।   जो वक्त था गुजरा तेरे साथ में  उस पल, उस शाम ओ सहर पे रोऊं। मजनूँ जैसा तो प्यार न मेरा "सैफ़ी" इश्क़ की कबर पे रोऊं।    ◆◆◆  "सैफ़ी"  ◆◆◆ (क़मर-चाँद) (शजर-पेड़)

Bas Naam Tera Mujhe Yaad Raha

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 गुमशुदा था अनजान राहों में और खोया ख़याल ओ ख़्वाब में  बस नाम तेरा मुझे याद रहा मेरी नेकीयों और बुराई में हर गुनाह में और सवाब में  बस नाम तेरा मुझे याद रहा ज़िन्दगी कोरा काग़ज़ ही सही पर दिल की खुली उस किताब में  बस नाम तेरा मुझे याद रहा दुनिया के हर इक सवाल में अश्कों से भरे हर जवाब में  बस नाम तेरा मुझे याद रहा मैं गुनाह करते करते थक गया  उन गुनाहों के हर हिसाब में  बस नाम तेरा मुझे याद रहा तुम क्या जानोगे हाल दिल का मेरे दर्द जिसमें छुपाया उस हिजाब में बस नाम तेरा मूझे याद रहा  तुझसे मोहब्बत गुनाह ही तो था फ़ना हुआ तेरे इश्क़ के सैलाब में बस नाम तेरा मुझे याद रहा तुझसे मोहब्बत गुनाह ही तो था फ़ना हुआ तेरे इश्क़ के सैलाब में बस नाम तेरा मुझे याद रहा बस नाम तेरा मुझे याद रहा  سیفی

Khataa Ki Sazaa......

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ना चाह कर भी क्यूं  किसी से इतना मैं दूर हूँ क्या करूँ किस्मत के आगे थोड़ा सा मजबूर हूँ । ना उनकी कमी कोई मुहब्बत में शायद मेरी ही है कोई ख़ता अब उन ख़ताओं का नतीजा ये है इस मुहब्बत में चूर चूर हूँ। अब न दश्त में डर लगता है न तारीक में दम घबराता है अन्दर से जली ख़ाक हूँ मैं और ऊपर से पुर नूर हूँ। जैसे ज़िंदा लाश बना हूँ ख़ुद में खोई तलाश बना हूँ उम्मीद की आख़री आस हो कोई वैसा ही झूठा फितूर हूँ। ना चाह कर भी क्यूं  किसी से मैं इतना दूर हूँ....... ना चाह कर भी क्यूं  किसी से मैं इतना दूर हूँ...... سیفی

Yaadon ka Sath

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वो साथ नहीं तो क्या उसकी याद तो साथ है वो साथ नहीं तो क्या उसके अरमां तो साथ हैं उसकी हसरत थी एक दिन हमेशा के लिए एक हो जाएँगे वो साथ नहीं तो क्या उसकी हसरत तो साथ है बड़ी शिद्दत से किसी की वफ़ा को निभाया था हमने वो साथ नहीं तो क्या उसकी बेवफ़ाई तो साथ है जिसका चेहरा देख कर मेरी सुबह होती थी वो साथ नहीं तो क्या आँखों में कटी रातों में वो साथ है जिसके मिज़ाज से मेरे ख़याल बनते थे वो मिज़ाज नहीं तो क्या ख़याल तो मेरे साथ है سیفی