Khataa Ki Sazaa......
ना चाह कर भी क्यूं
किसी से इतना मैं दूर हूँ
क्या करूँ किस्मत के आगे
थोड़ा सा मजबूर हूँ ।
ना उनकी कमी कोई मुहब्बत में
शायद मेरी ही है कोई ख़ता
अब उन ख़ताओं का नतीजा ये है
इस मुहब्बत में चूर चूर हूँ।
अब न दश्त में डर लगता है
न तारीक में दम घबराता है
अन्दर से जली ख़ाक हूँ मैं
और ऊपर से पुर नूर हूँ।
जैसे ज़िंदा लाश बना हूँ
ख़ुद में खोई तलाश बना हूँ
उम्मीद की आख़री आस हो कोई
वैसा ही झूठा फितूर हूँ।
ना चाह कर भी क्यूं
किसी से मैं इतना दूर हूँ.......
ना चाह कर भी क्यूं
किसी से मैं इतना दूर हूँ......
سیفی
Allah behtar jane in falsafo ko
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