Guzre Lamhe

मैं नफरतों के साये में 
दिन रात घिरा सा रहता हूँ 
नफरत ही बची हैं इस जग में 
मैं आज सभी से कहता हूँ l 


अनजान हुवा करते थे जो 
बेजान हुआ करते थे जो 
मैं दर्द बनकर रगों में उनकी 
दिन रात यूँ ही अब बहता हूँ l 


मुझे छोड कर, दिल तोड़ कर 
वो कैसे खुश रह लेते हैँ 
और कैसे  उनको बतलाऊँ 
ये तन्हाई कैसे सेहता  हूँ l 


हर इक इन्सान  बेवफा निकला 
मुझको कोई अरमान नहीं 
"सैफी"  उनकी बेवफाई में 
हर पल तड़पता रहता हूँ l 

                                                               
 سیفی 

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